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"उस रोज़ भी / अचल वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर

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उस रोज़ भी रोज़ की तरह
 
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लोग वह मिट्टी खोदते रहे
 
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जो प्रकृति से वंध्या थी
 
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उस आकाश की गरिमा पर
 
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प्रार्थनाएँ गाते रहे
 
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उन लोगों को  सौंप दी यात्राएँ
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जो स्वयं बैसाखियों के आदी थे
 
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उन स्वरों को छेड़ा
 
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जो सदियों से मात्र संवादी थे
 
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पथरीले द्वारों पर
 
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दस्तकों का होना भर था
 
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वह न होने का प्रारंभ था
 
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23:55, 31 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

उस रोज़ भी रोज़ की तरह
लोग वह मिट्टी खोदते रहे
जो प्रकृति से वंध्या थी
उस आकाश की गरिमा पर
प्रार्थनाएँ गाते रहे
जो जन्मजात बहरा था
उन लोगों को सौंप दी यात्राएँ
जो स्वयं बैसाखियों के आदी थे
उन स्वरों को छेड़ा
जो सदियों से मात्र संवादी थे
पथरीले द्वारों पर
दस्तकों का होना भर था
वह न होने का प्रारंभ था