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हाशिया / अचल वाजपेयी

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|संग्रह=शत्रु-शिविर तथा अन्य कविताएँ / अचल वाजपेयी
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लिखते हुए पृष्ठ पर
 
हाशिया छूट गया है
 
इन दिनों ढिठाई पर उतारू है
 
मैंने पहली बार देखा
  हांशिया हाशिया कोरा है, सपाट है 
किन्तु बेहद झगड़ालू है
 
वह सार्थक रचनाएँ
 
कूड़े के भाव बेच देता है
 
कुशल गोताखोर सा
 
समुद्र में गहरे पैठता है
 
रस्सियाँ हिलाता है
 
मैं उसे खींचना चाहता हूँ
 
वह अतल से मोती ला रहा है
 
सबसे चमकदार मोती
 
मैं उसे तुम्हीं को सौंपना चाहता हूँ
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