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कृतघ्न / सियाराम शरण गुप्त
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03:41, 1 नवम्बर 2009
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इन विटपवरों ने हे मरूत् ! मोदकरी,सुरभि सतत देके की सु-सेवा तुम्हारी!
व्यथित अब इन्हीं के वह्नि से आज देख
ज्वलित कर रहे हो और भी क्यों विशेष।
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Rajeevnhpc102
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