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अनिकेत / अजन्ता देव
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05:51, 1 नवम्बर 2009
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<Poem>
इसे कभी महल कभी प्रासाद कहा गया
सभी कक्ष बंद किए जा रहे हैं
खुला है केवल एक अकेला द्वार
बहर
बाहर
नक्षत्रों की खचाखच है
पीछे बंद होती साँकल की
धातुई ध्वनि
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