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सुनो / अजित कुमार

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|संग्रह=अकेले कंठ की पुकार / अजित कुमार
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यहाँ से पथ मुड़ जायेगा ।
 
:इधर घूमेगा, फिर उस ओर
 
:खोजने को पृथ्वी का छोर
 
:बड़ी ही मंज़िल नापेगा।
 
और कहते हैं-
 
आखिर में यहीं वापस उड़ आएगा …
 
उन्हें कहने दो-
 
जो वे कहें।
 
चलो, चलते ही हम-तुम रहें।
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