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"आभार-स्वीकार / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर

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‘दर्द’ तुमने कहा जिसको
 
‘दर्द’ तुमने कहा जिसको
 
 
और यों दुखती हुई रग जान ली
 
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मैंने अभी तक सहा जिसको ।
 
मैंने अभी तक सहा जिसको ।
 
 
::उसीको-
 
::उसीको-
 
 
हाँ, छिपाने के लिये उसको
 
हाँ, छिपाने के लिये उसको
 
 
गीत गाये थे,
 
गीत गाये थे,
 
 
अधूरे और पूरे गीत गाये थे ।
 
अधूरे और पूरे गीत गाये थे ।
 
  
 
जान ही जब लिया तुमने
 
जान ही जब लिया तुमने
 
 
शेष और भला बचा क्या ।
 
शेष और भला बचा क्या ।
 
 
दर्द के अतिरिक्त हमने
 
दर्द के अतिरिक्त हमने
 
 
सहा याकि रचा भला क्या ।
 
सहा याकि रचा भला क्या ।
 
 
::कहीं कुछ भी नहीं :
 
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::केवल प्यास, केवल आग ।
 
::केवल प्यास, केवल आग ।
 
 
::धब्बे, चिन्ह, बेबस दाग
 
::धब्बे, चिन्ह, बेबस दाग
 
 
यही थे-
 
यही थे-
 
 
जिनको बहाने के लिये आँसू छिपाये थे ।
 
जिनको बहाने के लिये आँसू छिपाये थे ।
 
  
 
तुम्हींने यह भी कहा था-
 
तुम्हींने यह भी कहा था-
 
 
::‘मिटाने पर मिट न जाये
 
::‘मिटाने पर मिट न जाये
 
 
::दर्द यह ऐसा नहीं है ।
 
::दर्द यह ऐसा नहीं है ।
 
 
::शर्त लेकिन एक है-
 
::शर्त लेकिन एक है-
 
 
::उस दर्द में मत रमो ।
 
::उस दर्द में मत रमो ।
 
 
::देखो।
 
::देखो।
 
 
::पाल खोलो, उठाओ लंगर,
 
::पाल खोलो, उठाओ लंगर,
 
 
::चलो-
 
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::दुखती हुई रग के सदृश यह द्वीप त्यागो ।‘
 
::दुखती हुई रग के सदृश यह द्वीप त्यागो ।‘
 
 
तुम्हींने हमसे कहा था-
 
तुम्हींने हमसे कहा था-
 
 
::‘अरे, जागो ।‘
 
::‘अरे, जागो ।‘
 
  
 
और उस कहने तथा
 
और उस कहने तथा
 
 
खुद भी बहुत सहने के कारन
 
खुद भी बहुत सहने के कारन
 
 
मुक्ति की जब घड़ी आई-
 
मुक्ति की जब घड़ी आई-
 
 
::स्वत: बन्दी बना था जिस द्वीप में
 
::स्वत: बन्दी बना था जिस द्वीप में
 
 
::उससे विलग हो, पाल खोले
 
::उससे विलग हो, पाल खोले
 
 
::मुक्त नाविक ने
 
::मुक्त नाविक ने
 
 
::उधर … उस द्वीप को जाती लहर पर
 
::उधर … उस द्वीप को जाती लहर पर
 
 
पुष्प अंजलि से बहाये थे ।
 
पुष्प अंजलि से बहाये थे ।
 
  
 
आज वह सब व्यक्त है
 
आज वह सब व्यक्त है
 
 
जिसको छिपाने के लिये …
 
जिसको छिपाने के लिये …
 
 
छिपा देने के लिये कुल गीत गाये थे ।
 
छिपा देने के लिये कुल गीत गाये थे ।
 
 
आज सचमुच मुक्त है
 
आज सचमुच मुक्त है
 
 
जिसको बहाने के लिये …
 
जिसको बहाने के लिये …
 
 
बहा देने के लिये आँसू छिपाये थे ।
 
बहा देने के लिये आँसू छिपाये थे ।
 
 
आज तो वह त्यक्त है
 
आज तो वह त्यक्त है
 
 
वह दर्द भी : वह द्वीप भी …
 
वह दर्द भी : वह द्वीप भी …
 
 
वही जिस तक पुष्प अंजलि से बहाये थे ।
 
वही जिस तक पुष्प अंजलि से बहाये थे ।
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20:46, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

‘दर्द’ तुमने कहा जिसको
और यों दुखती हुई रग जान ली
मैंने अभी तक सहा जिसको ।
उसीको-
हाँ, छिपाने के लिये उसको
गीत गाये थे,
अधूरे और पूरे गीत गाये थे ।

जान ही जब लिया तुमने
शेष और भला बचा क्या ।
दर्द के अतिरिक्त हमने
सहा याकि रचा भला क्या ।
कहीं कुछ भी नहीं :
केवल प्यास, केवल आग ।
धब्बे, चिन्ह, बेबस दाग
यही थे-
जिनको बहाने के लिये आँसू छिपाये थे ।

तुम्हींने यह भी कहा था-
‘मिटाने पर मिट न जाये
दर्द यह ऐसा नहीं है ।
शर्त लेकिन एक है-
उस दर्द में मत रमो ।
देखो।
पाल खोलो, उठाओ लंगर,
चलो-
दुखती हुई रग के सदृश यह द्वीप त्यागो ।‘
तुम्हींने हमसे कहा था-
‘अरे, जागो ।‘

और उस कहने तथा
खुद भी बहुत सहने के कारन
मुक्ति की जब घड़ी आई-
स्वत: बन्दी बना था जिस द्वीप में
उससे विलग हो, पाल खोले
मुक्त नाविक ने
उधर … उस द्वीप को जाती लहर पर
पुष्प अंजलि से बहाये थे ।

आज वह सब व्यक्त है
जिसको छिपाने के लिये …
छिपा देने के लिये कुल गीत गाये थे ।
आज सचमुच मुक्त है
जिसको बहाने के लिये …
बहा देने के लिये आँसू छिपाये थे ।
आज तो वह त्यक्त है
वह दर्द भी : वह द्वीप भी …
वही जिस तक पुष्प अंजलि से बहाये थे ।