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"दो निजी कविताएँ / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर

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ये जो चेहरे पर खिंची लकीरें हैं…
 
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:::ये हँसने से, गाने से,
 
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:::गाते रहने से  
 
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:::अंकित होनेवाली तस्वीरें हैं ।
 
:::अंकित होनेवाली तस्वीरें हैं ।
 
  
 
ये जो अपनी वय से ज़्यादा  
 
ये जो अपनी वय से ज़्यादा  
 
 
दिखनेवाले, माथे पर के  
 
दिखनेवाले, माथे पर के  
 
 
टेढे-मेढे बल हैं—
 
टेढे-मेढे बल हैं—
 
 
:::ये, वे सारे पल हैं,
 
:::ये, वे सारे पल हैं,
 
 
:::जो हमने बाँट दिए,
 
:::जो हमने बाँट दिए,
 
 
:::या आँखों-आँखों में ही
 
:::या आँखों-आँखों में ही
 
 
:::रखकर काट दिए ।
 
:::रखकर काट दिए ।
 
 
सबकी निगाह में ‘बोझ’—
 
सबकी निगाह में ‘बोझ’—
 
 
वही तो मेरे संबल हैं ।
 
वही तो मेरे संबल हैं ।
 
 
जो माथे पर टेढे-मेढे, आड़े-तिरछे
 
जो माथे पर टेढे-मेढे, आड़े-तिरछे
 
 
बल हैं ।
 
बल हैं ।
 
 
  
 
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पहले ही जैसी शान्त-सहज
 
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जिज्ञासा आँखों में ।
 
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‘जो व्यक्त नहीं की गई’—
 
‘जो व्यक्त नहीं की गई’—
 
 
खुशी कुछ ऐसी होंठों पर ।
 
खुशी कुछ ऐसी होंठों पर ।
 
 
सब कुछ तो बदल गया
 
सब कुछ तो बदल गया
 
  
 
पर
 
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मुख का भाव नहीं बदला ।
 
मुख का भाव नहीं बदला ।
 
  
 
संघर्ष, घुटन,
 
संघर्ष, घुटन,
 
 
हारी बाज़ी, लाचारी ।
 
हारी बाज़ी, लाचारी ।
 
 
पर
 
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जीवन जीने का चाव नहीं बदला ।
 
जीवन जीने का चाव नहीं बदला ।
 
  
 
सब कुछ तो बदल गया
 
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पर मुख का भाव…।
 
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20:52, 1 नवम्बर 2009 का अवतरण

1

ये जो चेहरे पर खिंची लकीरें हैं…
ये हँसने से, गाने से,
गाते रहने से
अंकित होनेवाली तस्वीरें हैं ।

ये जो अपनी वय से ज़्यादा
दिखनेवाले, माथे पर के
टेढे-मेढे बल हैं—
ये, वे सारे पल हैं,
जो हमने बाँट दिए,
या आँखों-आँखों में ही
रखकर काट दिए ।
सबकी निगाह में ‘बोझ’—
वही तो मेरे संबल हैं ।
जो माथे पर टेढे-मेढे, आड़े-तिरछे
बल हैं ।

2

पहले ही जैसी शान्त-सहज
जिज्ञासा आँखों में ।
‘जो व्यक्त नहीं की गई’—
खुशी कुछ ऐसी होंठों पर ।
सब कुछ तो बदल गया

पर
मुख का भाव नहीं बदला ।

संघर्ष, घुटन,
हारी बाज़ी, लाचारी ।
पर
जीवन जीने का चाव नहीं बदला ।

सब कुछ तो बदल गया
पर मुख का भाव…।