|संग्रह=ये फूल नहीं / अजित कुमार
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सुनते हैं पिछले युग में पहाड़ उड़ते थे ।
मैंने सिर्फ़ मक़बरों को चलते देखा है ।
पख कटे-से उड़अते हैं : केवल अतीत में ।
दुनते सुनते हैं प्रभु ने उँगली पर उठा लिया था गोवर्धन को ।
उनके अनुचर अब अपने ह्रदयों में क़ब्रें ले चलते हैं ।
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