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"भोजवन में पतझड़ / अजेय" के अवतरणों में अंतर
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मौसम में घुल गया है शीत | मौसम में घुल गया है शीत |
22:59, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
मौसम में घुल गया है शीत
बेशरम ऎयार
छीन रहा वादियों की हरी चुनरी
लजाती ढलानें
हो रही संतरी
फिर पीली
और भूरी
मटमैला धूसर आकाश
नदी पारदर्शी
संकरी !
काँप कर सिहर उठी सहसा
कुछ आखिरी बदरंग पत्तियाँ
शाख से छूट उड़ी सकुचाती
खिड़की की काँच पर
चिपक गई एकाध !
दरवाजे की झिर्रियों से
सेंध मारता
वह आखिरी अक्तूबर का
बदमज़ा अहसास
ज़बरन लिपट गया मुझसे !
लेटी रहेगी अगले मौसम तक
एक लम्बी
सर्द
सफ़ेद
मुर्दा
लिहाफ़ के नीचे
एक कुनकुनी उम्मीद
कि कोंपले फूटेंगी
और लौटेगी
भोजवन में ज़िन्दगी ।
रचनाकाल : नैनगार 18-10-2005