भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"देखिये न मेरी कारगुज़ारी / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
लेखक: [[अज्ञेय]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKRachna
[[Category:अज्ञेय]]
+
|रचनाकार=अज्ञेय
 
+
}}
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
+
{{KKCatKavita}}
 
+
<poem>
अब देखिये न मेरी कारगुज़ारी<br>
+
अब देखिये न मेरी कारगुज़ारी
कि मैं मँगनी के घोड़े पर<br>
+
कि मैं मँगनी के घोड़े पर
सवारी पर<br>
+
सवारी पर
ठाकुर साहब के लिए उन की रियाया से लगान<br>
+
ठाकुर साहब के लिए उन की रियाया से लगान
और सेठ साहब के लिए पंसार-हट्टे की हर दुकान<br>
+
और सेठ साहब के लिए पंसार-हट्टे की हर दुकान
से किराया<br>
+
से किराया
वसूल कर लाया हूँ ।<br>
+
वसूल कर लाया हूँ ।
थैली वाले को थैली<br>
+
थैली वाले को थैली
तोड़े वाले को तोड़ा<br>
+
तोड़े वाले को तोड़ा
-और घोड़े वाले को घोड़ा<br>
+
-और घोड़े वाले को घोड़ा
सब को सब का लौटा दिया<br>
+
सब को सब का लौटा दिया
अब मेरे पास यह घमंड है<br>
+
अब मेरे पास यह घमंड है
कि सारा समाज मेरा एहसानमन्द है ।<br><br>
+
कि सारा समाज मेरा एहसानमन्द है ।
 +
</poem>

23:43, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

अब देखिये न मेरी कारगुज़ारी
कि मैं मँगनी के घोड़े पर
सवारी पर
ठाकुर साहब के लिए उन की रियाया से लगान
और सेठ साहब के लिए पंसार-हट्टे की हर दुकान
से किराया
वसूल कर लाया हूँ ।
थैली वाले को थैली
तोड़े वाले को तोड़ा
-और घोड़े वाले को घोड़ा
सब को सब का लौटा दिया
अब मेरे पास यह घमंड है
कि सारा समाज मेरा एहसानमन्द है ।