लेखक: [[अज्ञेय]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=अज्ञेय]]}}{{KKCatKavita}}<poem>किसी का सत्य था,मैंने संदर्भ में जोड़ दिया ।कोई मधुकोष काट लाया था,मैंने निचोड़ लिया ।
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~किसी की उक्ति में गरिमा थीमैंने उसे थोड़ा-सा संवार दिया,किसी की संवेदना में आग का-सा ताप थामैंने दूर हटते-हटते उसे धिक्कार दिया ।
किसी का सत्य कोई हुनरमन्द था:मैंने देखा और कहा,<br>'यों!'मैंने संदर्भ में जोड़ थका भारवाही पाया -घुड़का या कोंच दिया ।<br>कोई मधुकोष काट लाया था,<br>मैंने निचोड़ लिया ।<br><br>'क्यों!'
किसी की उक्ति में गरिमा पौध थी<br>,मैंने उसे थोड़ा-सा संवार दिया,<br>सींची और बढ़ने पर अपना ली।किसी की संवेदना में आग का-सा ताप था<br>लगाई लता थी,मैंने दुर हटते-हटते उसे धिक्कार दिया दो बल्ली गाड़ उसी पर छवा ली ।<br><br>
कोई हुनरमन्द था:<br>किसी की कली थीमैंने देखा और कहाअनदेखे में बीन ली, 'यों!'<br>थका भारवाही पाया -<br>किसी की बात थीघुड़का या कोंच दिया, 'क्यों!'<br><br>मैंने मुँह से छीन ली ।
किसी की पौध थी,<br>मैंने सींची और बढ़ने पर अपना ली।<br>किसी की लगाई लता थी,<br>मैंने दो बल्ली गाड़ उसी पर छवा ली ।<br><br> किसी की कली थी<br>मैंने अनदेखे में बीन ली,<br>किसी की बात थी<br>मैंने मुँह से छीन ली ।<br><br> यों मैं कवि हूँ, आधुनिक हूँ, नया हूँ:<br>काव्य-तत्त्व की खोज में कहाँ नहीं गया हूँ ?<br>चाहता हूँ आप मुझे<br>एक-एक शब्द पर सराहते हुए पढ़ें ।<br>पर प्रतिमा--अरे, वह तो<br>जैसी आप को रुचे आप स्वयं गढ़ें ।<br><br/poem>