"निरस्त्र / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय | |संग्रह=कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
+ | <poem> | ||
कुहरा था, | कुहरा था, | ||
− | |||
सागर पर सन्नाटा था: | सागर पर सन्नाटा था: | ||
− | |||
पंछी चुप थे। | पंछी चुप थे। | ||
− | |||
महाराशि से कटा हुआ | महाराशि से कटा हुआ | ||
− | |||
थोड़ा-सा जल | थोड़ा-सा जल | ||
− | |||
बन्दी हो | बन्दी हो | ||
− | |||
चट्टानों के बीच एक गढ़िया में | चट्टानों के बीच एक गढ़िया में | ||
− | |||
निश्चल था— | निश्चल था— | ||
− | |||
पारदर्श। | पारदर्श। | ||
− | |||
− | |||
प्रस्तर-चुम्बी | प्रस्तर-चुम्बी | ||
− | |||
बहुरंगी | बहुरंगी | ||
− | |||
उद्भिज-समूह के बीच | उद्भिज-समूह के बीच | ||
− | |||
मुझे सहसा दीखा | मुझे सहसा दीखा | ||
− | |||
केंकड़ा एक: | केंकड़ा एक: | ||
− | |||
आँखें ठण्डी | आँखें ठण्डी | ||
− | |||
निष्प्रभ | निष्प्रभ | ||
− | |||
निष्कौतूहल | निष्कौतूहल | ||
− | |||
निर्निमेष। | निर्निमेष। | ||
− | |||
− | |||
जाने | जाने | ||
− | |||
मुझ में कौतुक जागा | मुझ में कौतुक जागा | ||
− | |||
या उस प्रसृत सन्नाटे में | या उस प्रसृत सन्नाटे में | ||
− | |||
अपना रहस्य यों खोल | अपना रहस्य यों खोल | ||
− | |||
आँख-भर तक लेने का साहस; | आँख-भर तक लेने का साहस; | ||
− | |||
मैंने पूछा: क्यों जी, | मैंने पूछा: क्यों जी, | ||
− | |||
यदि मैं तुम्हें बता दूँ | यदि मैं तुम्हें बता दूँ | ||
− | |||
मैं करता हूँ प्यार किसी को— | मैं करता हूँ प्यार किसी को— | ||
− | |||
तो चौंकोगे? | तो चौंकोगे? | ||
− | |||
ये ठण्डी आँखें झपकेंगी | ये ठण्डी आँखें झपकेंगी | ||
− | |||
औचक? | औचक? | ||
− | |||
− | |||
उस उदासीन ने | उस उदासीन ने | ||
− | |||
सुना नहीं: | सुना नहीं: | ||
− | |||
आँखों में | आँखों में | ||
− | |||
वही बुझा सूनापन जमा रहा। | वही बुझा सूनापन जमा रहा। | ||
− | |||
ठण्डे नीले लोहू में | ठण्डे नीले लोहू में | ||
− | |||
दौड़ी नहीं | दौड़ी नहीं | ||
− | |||
सनसनी कोई। | सनसनी कोई। | ||
− | |||
− | |||
पर अलक्ष्य गति से वह | पर अलक्ष्य गति से वह | ||
− | |||
कोई लीक पकड़ | कोई लीक पकड़ | ||
− | |||
धीरे-धीरे | धीरे-धीरे | ||
− | |||
पत्थर की ओट | पत्थर की ओट | ||
− | |||
किसी कोटर में | किसी कोटर में | ||
− | |||
सरक गया। | सरक गया। | ||
− | |||
− | |||
यों मैं | यों मैं | ||
− | |||
अपने रहस्य के साथ | अपने रहस्य के साथ | ||
− | |||
रह गया | रह गया | ||
− | |||
सन्नाटे से घिरा | सन्नाटे से घिरा | ||
− | |||
अकेला | अकेला | ||
− | |||
अप्रस्तुत | अप्रस्तुत | ||
− | |||
अपनी ही जिज्ञासा के सम्मुख निरस्त्र | अपनी ही जिज्ञासा के सम्मुख निरस्त्र | ||
− | |||
निष्कवच, | निष्कवच, | ||
− | |||
वध्य। | वध्य। | ||
+ | </poem> |
11:55, 2 नवम्बर 2009 का अवतरण
कुहरा था,
सागर पर सन्नाटा था:
पंछी चुप थे।
महाराशि से कटा हुआ
थोड़ा-सा जल
बन्दी हो
चट्टानों के बीच एक गढ़िया में
निश्चल था—
पारदर्श।
प्रस्तर-चुम्बी
बहुरंगी
उद्भिज-समूह के बीच
मुझे सहसा दीखा
केंकड़ा एक:
आँखें ठण्डी
निष्प्रभ
निष्कौतूहल
निर्निमेष।
जाने
मुझ में कौतुक जागा
या उस प्रसृत सन्नाटे में
अपना रहस्य यों खोल
आँख-भर तक लेने का साहस;
मैंने पूछा: क्यों जी,
यदि मैं तुम्हें बता दूँ
मैं करता हूँ प्यार किसी को—
तो चौंकोगे?
ये ठण्डी आँखें झपकेंगी
औचक?
उस उदासीन ने
सुना नहीं:
आँखों में
वही बुझा सूनापन जमा रहा।
ठण्डे नीले लोहू में
दौड़ी नहीं
सनसनी कोई।
पर अलक्ष्य गति से वह
कोई लीक पकड़
धीरे-धीरे
पत्थर की ओट
किसी कोटर में
सरक गया।
यों मैं
अपने रहस्य के साथ
रह गया
सन्नाटे से घिरा
अकेला
अप्रस्तुत
अपनी ही जिज्ञासा के सम्मुख निरस्त्र
निष्कवच,
वध्य।