{{KKRachna
|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय
}}
{{KKCatKavita}}<poem>समय क्षण-भर थमा सा : फिर तौल तोल डैने उड़ गया पंछी क्षितिज की ओर : मद्धिम लालिमा ढरकी अलक्षित ।अलक्षित।
तिरोहित हो चली ही थी कि सहसा
फूट तारे ने कहा : रे समय, ::तू क्या थक गया ?
रात का संगीत फिर
तिरने लगा आकाश में ।में।</poem>