भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कभी पाना मुझे / कुंवर नारायण" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार = कुंवर नारायण
 
|रचनाकार = कुंवर नारायण
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita‎}}
 +
<poem>
 
तुम अभी आग ही आग
 
तुम अभी आग ही आग
 
 
मैं बुझता चिराग
 
मैं बुझता चिराग
 
 
   
 
   
 
 
हवा से भी अधिक अस्थिर हाथों से
 
हवा से भी अधिक अस्थिर हाथों से
 
 
पकड़ता एक किरण का स्पन्द
 
पकड़ता एक किरण का स्पन्द
 
 
पानी पर लिखता एक छंद
 
पानी पर लिखता एक छंद
 
 
बनाता एक आभा-चित्र
 
बनाता एक आभा-चित्र
 
 
  
 
और डूब जाता अतल में
 
और डूब जाता अतल में
 
 
एक सीपी में बंद
 
एक सीपी में बंद
 
 
  
 
कभी पाना मुझे
 
कभी पाना मुझे
 
 
सदियों बाद
 
सदियों बाद
  
दो गोलार्धों के बीच
+
दो गोलाद्धों के बीच
 
+
 
झूमते एक मोती में ।
 
झूमते एक मोती में ।
 +
</poem>

15:49, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

तुम अभी आग ही आग
मैं बुझता चिराग
 
हवा से भी अधिक अस्थिर हाथों से
पकड़ता एक किरण का स्पन्द
पानी पर लिखता एक छंद
बनाता एक आभा-चित्र

और डूब जाता अतल में
एक सीपी में बंद

कभी पाना मुझे
सदियों बाद

दो गोलाद्धों के बीच
झूमते एक मोती में ।