"गिरना / अनीता वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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रहस्यों को समझने से ज़्यादा ज़रूरी है | रहस्यों को समझने से ज़्यादा ज़रूरी है |
21:39, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
रहस्यों को समझने से ज़्यादा ज़रूरी है
चीज़ों के होने को समझना
मज़बूती से खड़े हैं पहाड़
समुद्र में आता है ज्वार
पृथ्वी घूमती है लट्टू की तरह
मनुष्य गिरता जाता है गर्त्त में
इनके कुछ कारण और जवाब हैं हमारे पास
हमें रहना और होना होता है इनके बीच
पृथ्वी की घूमती चक्की में कोई रुकावट नहीं है
समुद्र उछाल ही लेता है अपना पानी
पहाड़ गंजे होने के बावजूद खड़े हैं अपने
आदिम पत्थरों के साथ
लेकिन मनुष्य
वह लेटा है पेट के बल पैसे बटोरता हुआ
भागता खोया हुआ बाज़ारों में
एक साथ खुश और डरा हुआ
जैसे कोई बीमार अपनी ही तीमारदारी करता हुआ
वह पहचानता है दुश्मन को उसके हज़ार हाथों के साथ
अपने घरों में बैठ उससे दोस्ती करता है
मिलाता है हाथ
आओ रहो हमारे घर
अभी हम और गिरने को तैयार हैं ।