भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बानी माँग रहे / अनूप अशेष" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनूप अशेष }} <poem> अपने सूखे हुए खेत फिर पानी माँग र...)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=अनूप अशेष   
 
|रचनाकार=अनूप अशेष   
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 
अपने सूखे हुए खेत
 
अपने सूखे हुए खेत
पंक्ति 27: पंक्ति 28:
 
ओंठ की
 
ओंठ की
 
बानी माँग रहे।।
 
बानी माँग रहे।।
 +
</poem>

21:52, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

अपने सूखे हुए खेत
फिर पानी माँग रहे,
बूढ़ों के वारिस
बच्चे ज्यों
छानी माँग रहे।

बादल जी के घर में
कैसे इतनी देर हुई,
फटी चादरों के कोने
ज्यों खोई हुई
सुई।
आसों के
यह बरस इंद्र।
गुड़धानी माँग रहे

हम तो अपने दिन से
लंबी प्यासें साँट रहे,
घर का बिया
अधसना आटा
आशें बाँट रहें।
मेड़ों-से जम गए
ओंठ की
बानी माँग रहे।।