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मनीऑर्डर / अनूप सेठी

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|रचनाकार=अनूप सेठी
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<Poem>
मनीआडर
'''1.'''
 
मनीआडर पर हैं आखर मुड़े तुड़े
डाकखाने में जमा करवाए जो नोट
बच रहा पसीना मनीआडर फार्म ने सोखा
जिन हाथों में पहुंचेगी पहुँचेगी मनीआडर फार्म की पर्ची दस दिन बाद
उनके पसीने में घुलमिल जाएगा
पर्ची में रचा हुआ पसीना
जब जब दरवाजा खुलेगा
रोशन हवा के झोंके से
दूर देस से आई पर्ची पंख पँख फड़फड़ाएगी
नोटों में सोखने की ताकत जबर्दस्त है
ताक पर रखी फोटो के पीछे रखी
पर्चियों की थब्बी पर उड़ -उड़ कर ठहरेगी
घर भर की नजर
पसीने से भीगी पर्ची
हर बार पंख पँख फड़फड़ाती आएगी
घर घर में ताक पर अपने घोंसले में दुबक जाएगी
कभी कभार उजले कपड़ों में एक बाबू
किसी लघु पत्रिका के संपादक सँपादक को चंदा चँदा भेजता है
सायास लापरवाही से लाइन में खड़ा
पत्रिका और संपादक के नामों के हिज्जे ठीक करवाता है
उसके फार्म और झोले में उबले हुए पानी की बेजान महक है
वैसे कतरनें संदर्भ सँदर्भ और विचार भी बहुत हैं
कागज के परिंदे हैं
उड़ानें बहुत ऊँची हैं
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