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"जीभ की गाथा / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

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दाँतों ने जीभ से कहा-- ढीठ, सम्भल कर रह
 
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हम बत्तीस हैं और तू अकेली
 
हम बत्तीस हैं और तू अकेली
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फिर भी मैं रहूंगी
 
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जब तक यह चोला है।
 
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12:47, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

दाँतों ने जीभ से कहा-- ढीठ, सम्भल कर रह
हम बत्तीस हैं और तू अकेली
चबा जाएंगे

जीभ उसी तरह रहती थी इस लोकतांत्रिक मुँह में
जैसे बाबा आदम के ज़माने से
बत्तीस दाँतों के बीच बेचारी इकली जीभ

बोली, मालिक आप सब झड़ जाओगे एक दिन
फिर भी मैं रहूंगी
जब तक यह चोला है।