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वापस-2 / अरुण कमल
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<Poem>
मैं वहाँ भी गया जहाँ नदी सागर से मिलती थी
वहाँ भी जहाँ मैदान पहाड़ों में ढलते थे
और आंगन में एक पौधा सूखते-सूखते हरा था
एक बेल पक-पक कर कच्चा होता बार-बार।
</poem>
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