भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सूर्य-ग्रहण : 2 / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह = अपनी केवल धार / अरुण कमल
 
|संग्रह = अपनी केवल धार / अरुण कमल
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 
+
<poem>
 
धीरे-धीरे हो गया सर्वग्रास
 
धीरे-धीरे हो गया सर्वग्रास
 
 
पर एक काला गोल पिण्ड
 
पर एक काला गोल पिण्ड
 
 
रहा दीप्त
 
रहा दीप्त
 
 
विराजता पूरे आकाश में--
 
विराजता पूरे आकाश में--
 
 
ग्रहण के बावजूद सूर्य ही रहा सूर्य
 
ग्रहण के बावजूद सूर्य ही रहा सूर्य
 
 
ग्रहण के बावजूद सूर्य ही होता है सूर्य !
 
ग्रहण के बावजूद सूर्य ही होता है सूर्य !
 +
</poem>

12:56, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

धीरे-धीरे हो गया सर्वग्रास
पर एक काला गोल पिण्ड
रहा दीप्त
विराजता पूरे आकाश में--
ग्रहण के बावजूद सूर्य ही रहा सूर्य
ग्रहण के बावजूद सूर्य ही होता है सूर्य !