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सूर्य-ग्रहण : 3 / अरुण कमल

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रचनाकारः [[{{KKRachna|रचनाकार=अरुण कमल]][[Category:कविताएँ]][[Category:|संग्रह = अपनी केवल धार / अरुण कमल]] ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~}}{{KKCatKavita}}<poem>
बहुत सुन्दर लगेगा सूर्य
 
धीरे-धीरे गिरेगा प्रकाश
 
और अन्त में रह जाएगी एक काली पुतली
 
रोशनी के वर्क़ में लिपटी,
 
कभी बस हीरे के नग-सा दमकता सूर्य
 
कभी मोतियों की माला-सा झिलमिल
 
कभी गरी की एक फाँक-भर उज्ज्वल
 
और एक क्षण को धरती पर बिछेगी
 
प्रकाश और अँधेरे से बुनी चटाई
 
बहुत सुन्दर, बहुत भव्य है ब्रह्मांड का यह दृश्य
 
जो लूट सके सो लूट ।
 
ऎसी सुन्दरता कौन काम की
 
जिसके देखे दीदा फूटे ?
</poem>
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