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"ओह बेचारी कुबड़ी बुढ़िया / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर
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अचानक ही चल बसी | अचानक ही चल बसी | ||
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हमारी गली की कुबड़ी बुढ़िया, | हमारी गली की कुबड़ी बुढ़िया, | ||
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अभी तो कल ही बात हुई थी | अभी तो कल ही बात हुई थी | ||
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जब वह कोयला तोड़ रही थी | जब वह कोयला तोड़ रही थी | ||
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आज सुबह भी मैंने उसको | आज सुबह भी मैंने उसको | ||
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नल पर पानी भरते देखा | नल पर पानी भरते देखा | ||
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दिन भर कपड़ा फींचा, घर को धोया | दिन भर कपड़ा फींचा, घर को धोया | ||
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मालिक के घर गई और बर्तन भी माँजा | मालिक के घर गई और बर्तन भी माँजा | ||
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मलकीनी को तेल लगाया | मलकीनी को तेल लगाया | ||
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मालिक ने डाँटा भी शायद | मालिक ने डाँटा भी शायद | ||
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घर आई फिर चूल्हा जोड़ा | घर आई फिर चूल्हा जोड़ा | ||
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और पतोहू से भी झगड़ी | और पतोहू से भी झगड़ी | ||
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बेटे से भी कहा-सुनी की | बेटे से भी कहा-सुनी की | ||
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और अचानक बैठे-बैठे साँस रुक गई। | और अचानक बैठे-बैठे साँस रुक गई। | ||
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अभी तो चल सकती थी कुछ दिन बड़े मज़े से | अभी तो चल सकती थी कुछ दिन बड़े मज़े से | ||
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ओह बेचारी कुबड़ी बुढ़िया ! | ओह बेचारी कुबड़ी बुढ़िया ! | ||
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12:57, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
अचानक ही चल बसी
हमारी गली की कुबड़ी बुढ़िया,
अभी तो कल ही बात हुई थी
जब वह कोयला तोड़ रही थी
आज सुबह भी मैंने उसको
नल पर पानी भरते देखा
दिन भर कपड़ा फींचा, घर को धोया
मालिक के घर गई और बर्तन भी माँजा
मलकीनी को तेल लगाया
मालिक ने डाँटा भी शायद
घर आई फिर चूल्हा जोड़ा
और पतोहू से भी झगड़ी
बेटे से भी कहा-सुनी की
और अचानक बैठे-बैठे साँस रुक गई।
अभी तो चल सकती थी कुछ दिन बड़े मज़े से
ओह बेचारी कुबड़ी बुढ़िया !