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झरना / अरुण कमल

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|संग्रह = अपनी केवल धार / अरुण कमल
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पहली ही पहली बार हमने-तुमने देखा झरना
 
देखा कैसे जल उठता है गिरता है पत्थर पर
 
कैसे धान के लावों जैसा फूट-फूटकर झर पड़ता चट्टानों पर
 
कितना ठंडा घना था कितना जल वह
 
अभी-अभी धरती की नाभि खोल जो बाहर आया
 
कौन जानता कितनी सदियों वह पृथ्वी की नस-नाड़ी में घूमा
 
जीवन के आरम्भ से लेकर आज अभी तक
 
धरती को जो रहा भिंगोए
 
वही पुराना जल यह अपना
 
पहली ही पहली बार हमने-तुमने देखा झरना--
 
झरते जल को देख हिला
 
अपने भीतर का भी
 
जल ।
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