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"करमा का गीत / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

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चाँदनी में हिलती है परछाईं
 
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कन्धों से कन्धों पर बँधते हैं हाथ
 
कन्धों से कन्धों पर बँधते हैं हाथ
 
 
बँधती है पँखुड़ी से पँखुड़ी
 
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जल की धार-सा फूटता है
 
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एक साथ कण्ठों से राग
 
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चौहट पारती हैं टोले की लड़कियाँ
 
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उठते हैं स्वर
 
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छितराती है धरती पर
 
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राई-सी पाँवों की थाप
 
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आज इस भादो एकादशी को
 
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चाँदनी रात में
 
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लगा जाती है बहन मेरी
 
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सोच भरे ललाट पर रोली का टीका ।
 
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13:09, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

चाँदनी में हिलती है परछाईं
कन्धों से कन्धों पर बँधते हैं हाथ
बँधती है पँखुड़ी से पँखुड़ी
जल की धार-सा फूटता है
एक साथ कण्ठों से राग

चौहट पारती हैं टोले की लड़कियाँ
उठते हैं स्वर
छितराती है धरती पर
राई-सी पाँवों की थाप

आज इस भादो एकादशी को
चाँदनी रात में
लगा जाती है बहन मेरी
सोच भरे ललाट पर रोली का टीका ।