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उड़ी एक चिड़िया / अरुण कमल
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|संग्रह = अपनी केवल धार / अरुण कमल
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उड़ी एक चिड़िया
पंख झटकारते उठी
दूर बहुत दूर ऊपर आकाश में
उड़ी एक चिड़िया--
सूर्य की ओर
अभी अभी यहीं थी
मेरी ही थाली से उठाया था दाना
धीरे धीरे रह गया एक अग्नि-पंख
वह सूर्य बन गई ।
</poem>
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