Changes

अपवाद / अरुण कमल

99 bytes added, 07:47, 5 नवम्बर 2009
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अरुण कमल |संग्रह=नये इलाके में / अरुण कमल
}}
{{KKCatKavita}}<Poem>
जब सब वाह वाह कर रहे हों
 
जब पूरे मुल्क में एक ही नाम का जाप हो
 
तब मैं उठूंगा और कहूंगा--
 
और सब तो ठीक, पर उस इन्सान में
 
एक ख़राबी भी थी,
 
वो यह कि लोग जब खाने बैठते
 
वह नाक में उंगली कोंच लेता ।
 
जब सब थू थू कर रहे हों
 
जब मौत के बाद भी फाँसी की मांग हो
 
तब मैं उठूंगा और कहूंगा--
 
ख़ुदा के बन्दों, उस हैवान में एक
 
अच्छाई भी थी,
 
वो यह कि जब लोग एक साथ सोए
 
उसने कभी अकेले मसहरी नहीं बाँधी ।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits