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शोक / अरुण कमल

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|रचनाकार=अरुण कमल |संग्रह=नये इलाके में / अरुण कमल
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इस अंचल की एक इंच भूमि भी
 
ऎसी नहीं कि जहाँ होकर गुज़री न हो
 
यह नदी
 
पर क्रोध नहीं शोक है मुझे कि
 
बार बार जो बदलती रही रास्ता
 
बार बार जो पोंछती रही अपने ही छाप
 
जो एक पल कभी बैठी नहीं थिर
 
पा न सकी वो रास्त अब तक
 
जिसे ढूँढती फिरी सारी धरती उकटेर ।
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