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एक बार भी बोलती / अरुण कमल

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रचनाकारः [[{{KKRachna|रचनाकार=अरुण कमल]][[Category:कविताएँ]][[Category:|संग्रह = सबूत / अरुण कमल]] ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~}}{{KKCatKavita}}<poem>
मैंने उसे इतना डाँटा
 
गालियाँ दी
 
दो तीन बार पीटा भी
 
फिर भी वह चुपचाप सारा काम करती गई
 
मैंने उसे जब भी जो कहा
 
किया उसने
 
जानते हुए भी बहुत बार कि यह ग़लत काम है
 
उसने वही किया जो मैंने कहा
 
पानी का गिलास हाथ में लेने से पहले
 
मैंने तीन बार दौड़ाया
 
गिलास गन्दा है
 
पानी में चींटी है
 
गिलास पूरा भरा नहीं है
 
और वह चुपचाप अपनी ग़लती मान कर
 
दौड़ती रही और जब मैं पानी पी चुका
 
धीरे से बोली--
 
पानी अच्छा था?
 
और मेरा गुस्सा बढ़ता गया
 
इससे ज़्यादा कोई किसी को तंग भी नहीं कर सकता
 
आख़िर वह पत्नी थी मेरी
 
और एक दिन सबके सामने, मेहमानों और घर के लोगों के सामने
 
मैंने उसे बुरी तरह डाँटा
 
फिर भी वह कुछ नहीं बोली रोई भी नहीं
 
अभी भी मैं समझ नहीं पाया
 
कि वह कभी बोली क्यों नहीं
 
मरते वक़्त भी वह कुछ नहीं बोली
 
आँखें बस एक बार डोलीं और...
 
वह कभी बोली क्यों नहीं
 
एक बार भी बोलती
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