"एक बार भी बोलती / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर
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दो तीन बार पीटा भी | दो तीन बार पीटा भी | ||
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फिर भी वह चुपचाप सारा काम करती गई | फिर भी वह चुपचाप सारा काम करती गई | ||
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मैंने उसे जब भी जो कहा | मैंने उसे जब भी जो कहा | ||
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जानते हुए भी बहुत बार कि यह ग़लत काम है | जानते हुए भी बहुत बार कि यह ग़लत काम है | ||
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उसने वही किया जो मैंने कहा | उसने वही किया जो मैंने कहा | ||
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पानी का गिलास हाथ में लेने से पहले | पानी का गिलास हाथ में लेने से पहले | ||
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मैंने तीन बार दौड़ाया | मैंने तीन बार दौड़ाया | ||
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गिलास गन्दा है | गिलास गन्दा है | ||
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पानी में चींटी है | पानी में चींटी है | ||
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गिलास पूरा भरा नहीं है | गिलास पूरा भरा नहीं है | ||
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और वह चुपचाप अपनी ग़लती मान कर | और वह चुपचाप अपनी ग़लती मान कर | ||
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दौड़ती रही और जब मैं पानी पी चुका | दौड़ती रही और जब मैं पानी पी चुका | ||
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धीरे से बोली-- | धीरे से बोली-- | ||
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पानी अच्छा था? | पानी अच्छा था? | ||
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और मेरा गुस्सा बढ़ता गया | और मेरा गुस्सा बढ़ता गया | ||
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इससे ज़्यादा कोई किसी को तंग भी नहीं कर सकता | इससे ज़्यादा कोई किसी को तंग भी नहीं कर सकता | ||
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आख़िर वह पत्नी थी मेरी | आख़िर वह पत्नी थी मेरी | ||
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और एक दिन सबके सामने, मेहमानों और घर के लोगों के सामने | और एक दिन सबके सामने, मेहमानों और घर के लोगों के सामने | ||
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मैंने उसे बुरी तरह डाँटा | मैंने उसे बुरी तरह डाँटा | ||
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फिर भी वह कुछ नहीं बोली रोई भी नहीं | फिर भी वह कुछ नहीं बोली रोई भी नहीं | ||
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अभी भी मैं समझ नहीं पाया | अभी भी मैं समझ नहीं पाया | ||
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कि वह कभी बोली क्यों नहीं | कि वह कभी बोली क्यों नहीं | ||
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मरते वक़्त भी वह कुछ नहीं बोली | मरते वक़्त भी वह कुछ नहीं बोली | ||
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आँखें बस एक बार डोलीं और... | आँखें बस एक बार डोलीं और... | ||
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वह कभी बोली क्यों नहीं | वह कभी बोली क्यों नहीं | ||
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एक बार भी बोलती | एक बार भी बोलती | ||
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13:39, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
मैंने उसे इतना डाँटा
गालियाँ दी
दो तीन बार पीटा भी
फिर भी वह चुपचाप सारा काम करती गई
मैंने उसे जब भी जो कहा
किया उसने
जानते हुए भी बहुत बार कि यह ग़लत काम है
उसने वही किया जो मैंने कहा
पानी का गिलास हाथ में लेने से पहले
मैंने तीन बार दौड़ाया
गिलास गन्दा है
पानी में चींटी है
गिलास पूरा भरा नहीं है
और वह चुपचाप अपनी ग़लती मान कर
दौड़ती रही और जब मैं पानी पी चुका
धीरे से बोली--
पानी अच्छा था?
और मेरा गुस्सा बढ़ता गया
इससे ज़्यादा कोई किसी को तंग भी नहीं कर सकता
आख़िर वह पत्नी थी मेरी
और एक दिन सबके सामने, मेहमानों और घर के लोगों के सामने
मैंने उसे बुरी तरह डाँटा
फिर भी वह कुछ नहीं बोली रोई भी नहीं
अभी भी मैं समझ नहीं पाया
कि वह कभी बोली क्यों नहीं
मरते वक़्त भी वह कुछ नहीं बोली
आँखें बस एक बार डोलीं और...
वह कभी बोली क्यों नहीं
एक बार भी बोलती