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| रचनाकार=अली सरदार जाफ़री|संग्रह=मेरा सफ़र / अली सरदार जाफ़री
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<poem>
 
हमारी प्यारी ज़बान उर्दू
हमारे नग़्मों की जान उर्दू
यह वह ज़बाँ है कि जिसने ज़िन्दाँ की तीरगी में दिये जलाये
यह वह ज़बाँ है कि जिसके शो’लों से जल गये फाँसियों के साये
फ़राज़े-दारो-रसन१ रसन<ref>सूली की रस्सी की ऊँचाई</ref> से भी हमने सरफ़रोशी के गीत गाये
हमारी प्यारी ज़बान उर्दू
हमारे नग़्मों की जान उर्दू
हसीन दिलकश जवान उर्दू
चले हैं गंगो-जमन की वादी से हम हवाए-बहार बनकर
हिमालया से उतर रहे हैं तरान-ए-आबशार२ आबशार<ref>झरना</ref> बनकर
रवाँ हैं हिन्दोस्ताँ की रग-रग में ख़ून की सुर्ख़ घार बनकर
हमारी प्यारी ज़बान उर्दू
हसीन दिलकश जवान उर्दू
 १.सूली की रस्सी की ऊँचाई २.झरना{{KKMeaning}}</poem>
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