Changes

|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
}}
{{KKCatNazm}}
<poem>
 
ताशक़न्द की शाम
==========
मनाओ जश्ने-महब्बत कि ख़ूँ की बू न रही
बरस के खुल गये बारूद के सियह बादल
ख़ुदा करे कि यह शबनम यूँ ही बरसती रहे
ज़मीं हमेशा लहू के लिए तरसती रहे
{{KKMeaningsKKMeaning}}
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits