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"नज़्म / अली सरदार जाफ़री" के अवतरणों में अंतर

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वो हुस्न जिससे है तस्वीरे-क़ाइनात में रंग
  
 
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07:32, 6 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

एक नज़्म

जो आस्माँ पे चमकता है वो क़मर है कुछ और
जिसे हम अपना कहें वो क़मर ज़मीं पे है
वो जिसके हुस्न से रौशन जबीं सितारों की
वो जिसके हुस्न से रंगीनियाँ बहारों की
वो हुस्न फूल में, ज़र्रे में, आफ़ताब में है
वो हुस्न हर्फ़ में, नग़्में में है, किताब में है
वो हुस्न शोले में, शबनम में है, शराब में है
वो हुस्न जिससे है तस्वीरे-क़ाइनात में रंग