{{KKRachna
|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
|संग्रह=मेरा सफ़र / अली सरदार जाफ़री
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एक ख़वाब और======== ख़्वाब अब हुस्ने-तसव्वुर के उफ़ुक़१ उफ़ुक़<ref>क्षतिज</ref> से है हैं परेदिल के इक जज़्वएजज़्बा-ए-मासूम ने देखे थे जो ख़्वाब
और ताबीरों के तपते हुए सहराओं में
तश्नगी२ आब्लापा३ तश्नगी<ref>प्यास</ref>आबला-पा<ref>जिसके पैरों में छाले पड़े हुए हों</ref> शो’ला-ब-कफ़ मीजे-सराब४सराब<ref>मॄगतृष्णा कीतीरगी</ref>
यह तो मुमकिन नहीं बचपन का कोई दिन मिल जाए
या पलट आये कोई साअते-नायाबे-शबाब५शबाब<ref>अप्राप्य जवानी का कोई क्षण</ref>फूट निकले किसी अफ़सुर्दा तबस्सुम६ तबस्सुम<ref>बुझी हुई मुस्कराहट</ref> से किरनया दमक उट्ठे किसी दस्ते-बुरीदा७ बुरीदा<ref>कटे हाथ में</ref> में गुलाब
आह पत्थर की लकीरें हैं कि यादों के नुक़ूश
कौन लिख सकता है फिर उम्रे-गुज़श्ता की किताब
बीते लमहात लम्हात के सोये हुए तूफ़ानों मेंतैरते फिरते हैं फूटी हुई आँखों के हबाब८हुबाब<ref>बुलबुले</ref>ताबिशे-रंगे-शफ़क़९शफ़क़<ref>उषा की लालिमा की चमक</ref>, आतिशे-रूए-ख़ुर्शीद१०ख़ुर्शीद<ref>सूर्य के मुख की आग</ref>
मल के चेहरे पे सहर आयी है ख़ूने-अहबाब
जाने किस मोड़ पे किस राह में क्या बिती है
आस्तीनों को पुकारेंगे कहाँ तक आँसू
अब तो दामन को पकड़ते हैं लहू के गिर्दाब
देखती फिरती है एक-एक का मुँह खामोशीख़ामोशी
जाने क्या बात है शर्मिन्दा है अन्दाज़े-ख़िताब
दर-ब-दर ठोकरें खाते हुए फिरते हैं सवाल
फेंक फिर जज़्बए-बेताब की आ़लम पे कमन्द
एक ख़्वाब और भी ऐ हिम्मते-दुश्वारपसन्द
--------------------------------------------------१.क्षतिज २.जिसके पैरों में छले पडे़ हुए हों ३. प्यास ४.मॄगतृष्णा की तीरगी ५.अप्राप्य जवानी का कोई क्षण ६.बुझी हुई मुस्कराहट ७.कटे हाथ में ८.बुलबुले ९.उषा की लालिमा की चमक १०.सूर्य के मुख की आग।</poem>{{KKMeaning}}