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{{KKRachna
|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
|संग्रह=मेरा सफ़र / अली सरदार जाफ़री
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<poem>
 
क्या कहूँ भयानक है
या हसीं है यह मंज़र
पत्थरों की अँगड़ाई
पत्थरों के पंजों में
आहनी<ref>लोहे की</ref>सलाख़ें हैं
और इन सलाख़ों में
सूलियों के साये में
इन्क़िलाब पलता है
तीरगी<ref>अँधेरे</ref>१० के काँटों पर
आफ़ताब चलता है
पत्थरों के सीने से