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क्या करूंगी मैं / आकांक्षा पारे
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शाम बुहारने लगी जब दालान
मैंने चुपके से समेट लिया
गुनगुनी
धूम
धूप
का वो टुकड़ा
क़ैद है आज भी वो
मखमली डिबिया में
अनिल जनविजय
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