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"एक बार जो / अशोक वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर

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शायद ही फिर खिल पाएंगे।
  
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एक बार जो ढल जाएंगे
 
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शायद ही फिर खिल पाएंगे।<br>
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18:03, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

एक बार जो ढल जाएंगे
शायद ही फिर खिल पाएंगे।

फूल शब्द या प्रेम
पंख स्वप्न या याद
जीवन से जब छूट गए तो
फिर न वापस आएंगे।
अभी बचाने या सहेजने का अवसर है
अभी बैठकर साथ
गीत गाने का क्षण है।

अभी मृत्यु से दांव लगाकर
समय जीत जाने का क्षण है।
कुम्हलाने के बाद
झुलसकर ढह जाने के बाद
फिर बैठ पछताएंगे।

एक बार जो ढल जाएंगे
शायद ही फिर खिल पाएंगे।