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किसी चींटी अपनी नन्हीं सी काया पर | किसी चींटी अपनी नन्हीं सी काया पर | ||
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चींटी का जीवन फिर भी जीवन है : | चींटी का जीवन फिर भी जीवन है : | ||
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जिजीविषा से भरा-पूरा, | जिजीविषा से भरा-पूरा, | ||
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सिवाय इसके कि चींटी कभी नहीं गिड़गिड़ाती | सिवाय इसके कि चींटी कभी नहीं गिड़गिड़ाती | ||
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या कि अपने में शामिल नहीं करता । | या कि अपने में शामिल नहीं करता । | ||
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कवि की मुश्किल यह नहीं कि वह चींटी क्यों नहीं है | कवि की मुश्किल यह नहीं कि वह चींटी क्यों नहीं है | ||
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बल्कि यह कि शायद वह है, | बल्कि यह कि शायद वह है, | ||
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लेकिन न लोग उसे रहने देते हैं, | लेकिन न लोग उसे रहने देते हैं, | ||
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न इतिहास, सच या समय । | न इतिहास, सच या समय । | ||
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18:06, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
चीटियाँ इतिहास में नहीं होती :
उनकी कतारें उसके भूगोल के आरपार फैल जाती हैं;
किसी चींटी अपनी नन्हीं सी काया पर
इतिहास की धूल पड़ने देती है ।
चींटियाँ सच की भी चिंता नहीं करतीं :
सच भी अपने व्यास में
रेंग रही चींटी को शामिल करना ज़रूरी नहीं समझता ।
चींटी का समय लंबा न होता होगा :
जितना होता है उसमें वह उस समय से परेशान होती है
इसका कोई ज्ञात प्रमाण नहीं है ।
इतिहास, सच और समय से परे और उनके द्वारा अलक्षित
चींटी का जीवन फिर भी जीवन है :
जिजीविषा से भरा-पूरा,
सिवाय इसके कि चींटी कभी नहीं गिड़गिड़ाती
कि उसे कोई देखता नहीं, दर्ज नहीं करता
या कि अपने में शामिल नहीं करता ।
कवि की मुश्किल यह नहीं कि वह चींटी क्यों नहीं है
बल्कि यह कि शायद वह है,
लेकिन न लोग उसे रहने देते हैं,
न इतिहास, सच या समय ।