{{KKRachna
|रचनाकार=अशोक वाजपेयी
|संग्रह=कहीं नहीं वहीं / अशोक वाजपेयी}} {{KKCatKavita}}<poem>हम न होंगे-जीवन और उसका अनन्त स्पन्दन,कड़ी धूप में घास की हरीतिमा,प्रेम और मंदिरों का पुरातन स्थापत्य,अक्षर, भाषा और सुन्दर कविताएँ,इत्यादि, लेकिन, फिर भी सब होंगे-किलकारी, उदासी और गान सब-बस हम न होंगे।
हम न होंगे-<br>जीवन और उसका अनन्त स्पन्दनशायद कभी किसी सपने की दरार में,<br>कड़ी धूप किसी भी क्षण भर की याद में घास की हरीतिमा,<br>प्रेम और मंदिरों का पुरातन स्थापत्य,<br>अक्षर, भाषा और सुन्दर कविताएँ,<br>इत्यादि, लेकिन, फिर भी सब होंगेकिसी शब्द की अनसुनी अन्तर्ध्वनि में-<br>किलकारी, उदासी और गान सब-<br>हमारे होने की हलकी सी छाप बची होगीबस हम न होंगे।<br><br>
शायद कभी किसी सपने की दरार में,<br>किसी भी क्षण भर की याद में,<br>किसी शब्द की अनसुनी अन्तर्ध्वनि में-<br>हमारे होने की हलकी सी छाप बची होगी<br>बस हम न होंगे।<br><br> देवता होंगे, दुष्ट होंगे,<br>जंगलों को छोड़कर बस्तियों में<br>मठ बनाते सन्त होंगे,<br>दुबकी हुई पवित्रता होगी,<br>रौब जमाते पाप होंगे,<br>फटे-चिथड़े भरे-पूरे लोग होंगे,<br>बस हम न होंगे।<br><br>
संसार के कोई सुख-दुख कम न होंगे<br>
बस हम न होंगे।
</poem>