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"हम न होंगे / अशोक वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर

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हम न होंगे-
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किलकारी, उदासी और गान सब-
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बस हम  न होंगे।<br><br>
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रौब जमाते पाप होंगे,
 
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फटे-चिथड़े भरे-पूरे लोग होंगे,
देवता होंगे, दुष्ट होंगे,<br>
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बस हम न होंगे।
जंगलों को छोड़कर बस्तियों में<br>
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मठ बनाते सन्त होंगे,<br>
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दुबकी हुई पवित्रता होगी,<br>
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रौब जमाते पाप होंगे,<br>
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फटे-चिथड़े भरे-पूरे लोग होंगे,<br>
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बस हम न होंगे।<br><br>
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संसार के कोई सुख-दुख कम न होंगे<br>
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संसार के कोई सुख-दुख कम न होंगे
 
बस हम न होंगे।
 
बस हम न होंगे।
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18:26, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

हम न होंगे-
जीवन और उसका अनन्त स्पन्दन,
कड़ी धूप में घास की हरीतिमा,
प्रेम और मंदिरों का पुरातन स्थापत्य,
अक्षर, भाषा और सुन्दर कविताएँ,
इत्यादि, लेकिन, फिर भी सब होंगे-
किलकारी, उदासी और गान सब-
बस हम न होंगे।

शायद कभी किसी सपने की दरार में,
किसी भी क्षण भर की याद में,
किसी शब्द की अनसुनी अन्तर्ध्वनि में-
हमारे होने की हलकी सी छाप बची होगी
बस हम न होंगे।

देवता होंगे, दुष्ट होंगे,
जंगलों को छोड़कर बस्तियों में<
मठ बनाते सन्त होंगे,
दुबकी हुई पवित्रता होगी,
रौब जमाते पाप होंगे,
फटे-चिथड़े भरे-पूरे लोग होंगे,
बस हम न होंगे।

संसार के कोई सुख-दुख कम न होंगे
बस हम न होंगे।