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अकेले क्यों / अशोक वाजपेयी

26 bytes added, 12:57, 8 नवम्बर 2009
{{KKRachna
|रचनाकार=अशोक वाजपेयी
|संग्रह=कहीं नहीं वहीं / अशोक वाजपेयी
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<poem>
हम उस यात्रा में
अकेले क्यों रह जायेंगे ?
साथ क्यों नहीं आयेगा हमारा बचपन,
उसकी आकाश-चढ़ती पतंगें
और लकड़ी के छोटे से टुकड़े को
हथियार बनाकर दिग्विजय करने का उद्यम-
मिले उपहारों और चुरायी चीजों का अटाला ?
हम उस यात्रा में<br>अकेले क्यों पीछे रह जायेंगे ?<br>साथ क्यों नहीं आयेगा हमारा बचपनजायेगा युवा होने का अद्भुत आश्चर्य,<br>उसकी देह का प्रज्जवलित आकाश-चढ़ती पतंगें<br>,और लकड़ी के छोटे से टुकड़े को<br>कुछ भी कर सकने का शब्दों पर भरोसा,हथियार बनाकर दिग्विजय करने अमरता का उद्यम-<br>छद्म,मिले उपहारों और चुरायी चीजों अनन्त का पड़ोसी होने का अटाला आश्वासन?<br><br>
क्यों पीछे कहाँ रह जायेगा युवा होने पकी इच्छाओं का अद्भुत आश्चर्य,<br>धीरजदेह का प्रज्जवलित आकाश,<br>सपने और सच के बीच बनाकुछ भी कर सकने बेदरोदीवार का शब्दों पर भरोसा,<br>अमरता का छद्म,<br>घरऔर अनन्त का पड़ोसी होने का आश्वासनअगम्य में अपने ही पैरों की छाप से बनायी पगडण्डियाँ ?जीवन भर के साथ-संग के बादहम अकेले क्यों रह जायेंगे उस यात्रा में ?जो साथ थे वे किस यात्रा परकिस ओर जायेंगे ?<br><br>
कहाँ रह जायेगा पकी इच्छाओं का धीरज<br>सपने और सच के बीच बना<br>बेदरोदीवार का घर<br>और अगम्य में अपने ही पैरों की छाप से बनायी पगडण्डियाँ ?<br>जीवन भर के साथ-संग के बाद<br>हम अकेले क्यों रह जायेंगे उस यात्रा में ?<br>जो साथ थे वे किस यात्रा पर<br>किस ओर जायेंगे ?<br><br> वे नहीं आयेंगे हमारे साथ<br>तो क्या हम उनके साथ<br>
जा पायेंगे ?
</poem>
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