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नहीं आ पायेंगे / अशोक वाजपेयी

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|संग्रह=कहीं नहीं वहीं / अशोक वाजपेयी
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<poem>
जब एक दिन हम
सब कुछ छोड़कर चले जायेंगे
तो फिर बहुत दिनों तक वापस नहीं आयेंगे।
जब एक दिन हम<br>पता नहीं किस अँधेरे, किस भविष्य, किस जंगल में भटकेंगे,सब कुछ छोड़कर चले जायेंगे<br>किस गुफा में बसेरा करेंगे,तो फिर बहुत दिनों तक वापस नहीं आयेंगे।<br><br>कहाँ क्या-कुछ बीन-माँग कर खायेंगे ?
पता नहीं किस अँधेरेकौन से शब्द और स्वप्न, किस भविष्यकौन सी यादें और इच्छाएँ, किस जंगल में भटकेंगे,<br>किस गुफा में बसेरा करेंगेकौन से कपड़े और आदतें,<br>कहाँ क्यायहीं पीछे छूट जायेंगे-कुछ बीन-माँग कर खायेंगे जाते हुए पता नहीं कौन सी शुभाशंसाकौन सा विदागीत हम गुनगुनायेंगे ?<br><br>
पता फिर जब लौटेंगेतो पुरा-पड़ोस के लोग हमेंपहचान नहीं कौन से शब्द और स्वप्नपायेंगे,<br>कौन सी यादें और इच्छाएँअपना घर चौबारा बिना पलक झपकाये ताकेगा,<br>कौन से कपड़े और आदतें,<br>हम जो छोड़कर गये थेयहीं पीछे छूट जायेंगे-<br>जाते हुए पता उसी में वापस नहीं कौन सी शुभाशंसा<br>कौन सा विदागीत हम गुनगुनायेंगे ?<br><br>आ पायेंगे।
फिर जब लौटेंगे<br>हम यहाँ और वहाँ के बीचतो पुराकुछ देर चिथड़ों की तरह फड़फड़ायेंगे-पड़ोस के लोग हमें<br>पहचान नहीं पायेंगेफिर हवा में,<br>अपना घर चौबारा बिना पलक झपकाये ताकेगा,<br>हम जो छोड़कर गये थे<br>उसी में वापस नहीं आ पायेंगे।<br><br>
हम यहाँ और वहाँ के बीच<br>गैब मेंकुछ देर चिथड़ों की तरह फड़फड़ायेंगे-<br>फिर हवा आसमान में,<br><br>ओझल हो जायेंगे।
गैब में<br>आसमान में<br>ओझल हो जायेंगे।<br><br> हम चले जायेंगे<br>फिर वापस आयेंगे<br>और नहीं आ पायेंगे।<br/poem>
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