|रचनाकार=असद ज़ैदी
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[[Category:कविताएँ]]{{KKCatKavita}}[[Category:असद ज़ैदी]]<poem>कॉफ़ी होम में घुसते ही मुझे दिखाई दियाहेमंत कोई तीस साल बाद- - वही चेहरा वही घुँघराले बालसमझदारी और पलायन से भरी वहीशर्मीली हँसीकोई युवती आहिस्ता-आहिस्ता उससेकुछ कह रही थीऊपर नीचे कठपुतली की तरह सर हिलाते हुएवह कह रहा था... अच्छा अच्छा !जी...हाँ...एकदम- -बिल्कुल
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~यह कम्बख़्त बिल्कुल नहीं बदलाबेतकल्लुफ़ आवेग से मैं उसकी तरफ बढ़ाउसने मुझे देखा और नहीं भी देखाफिर उसी तरह सर हिलाने में मशग़ूल हो गया
कॉफ़ी होम में घुसते जैसी ही मुझे दिखाई दिया<br>हेमंत कोई तीस साल बादमैंने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा - - वही चेहरा वही घुँघराले बाल<br>समझदारी और पलायन ‘इस शहर में कब से भरी वही<br>हो हेमंत ! ’शर्मीली हँसी<br>मैं जान गया यह हेमंत नहीं हैकोई युवती आहिस्ता-आहिस्ता उससे<br>वह भी जान गया कि वह हेमंत नहीं हैकुछ कह रही थी<br>एक बनावटी लेकिन उदार मुस्कुराहट से उसनेऊपर नीचे कठपुतली की यह मामला रफ़ा दफ़ा कियाकॉफ़ी हाउसों में अक्सर इसी तरह सर हिलाते मंडराता रहता है अतीतऔर घूमते रहते हैं कुछ खिसियाए हुए<br>सेवह कह रहा था... अच्छा अच्छा !<br>गंजे प्रेतजी...हाँ...एकदम- -बिल्कुल<br><br>एक शाश्वत प्यास छिपाए हुए
यह कम्बख़्त बिल्कुल नहीं बदला<br>बेतकल्लुफ़ आवेग से मैं उसकी तरफ बढ़ा<br>उसने मुझे देखा और नहीं भी देखा<br>फिर उसी तरह सर हिलाने में मशग़ूल हो गया<br><br> जैसी ही मैंने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा -<br>‘इस शहर में कब से हो हेमंत ! ’<br>मैं जान गया यह हेमंत नहीं है<br>वह भी जान गया कि वह हेमंत नहीं है<br>एक बनावटी लेकिन उदार मुस्कुराहट से उसने<br>यह मामला रफ़ा दफ़ा किया<br><br>कॉफ़ी हाउसों में अक्सर इसी तरह<br>मंडराता रहता है अतीत<br>और घूमते रहते हैं कुछ खिसियाए हुए से<br>गंजे प्रेत<br>एक शाश्वत प्यास छिपाए हुए<br><br> हेमंत-- यह कैसे हो सकता था हेमंत<br>तीस साल तीस साल तो इस नौजवान की<br>उम्र भी नहीं है गाफ़िल !<br>यह उस हेमंत का बेटा भी नहीं हो सकता<br>इतना हमशक्ल होने पर कौन<br>कमअक़्ल होगा कि <br><br>अपने बाप की नक़ल बना फिरे<br><br>तुम जो भी कोई हो -- क्या सचमुच हो ?<br>या यह भी एक दिवास्वप्न है हेमंत द्वितीय ?<br/poem>