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"हम उनसे अगर मिल बैठते हैं / इब्ने इंशा" के अवतरणों में अंतर
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हम उनसे अगर मिल बैठते हैं क्या दोष हमारा होता है | हम उनसे अगर मिल बैठते हैं क्या दोष हमारा होता है | ||
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कुछ अपनी जसारत होती है कुछ उनका इशारा होता है | कुछ अपनी जसारत होती है कुछ उनका इशारा होता है | ||
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कटने लगीं रातें आँखों में, देखा नहीं पलकों पर अक्सर | कटने लगीं रातें आँखों में, देखा नहीं पलकों पर अक्सर | ||
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या शामे-ग़रीबाँ का जुगनू या सुबह का तारा होता है | या शामे-ग़रीबाँ का जुगनू या सुबह का तारा होता है | ||
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हम दिल को लिए हर देस फिरे इस जिंस के गाहक मिल न सके | हम दिल को लिए हर देस फिरे इस जिंस के गाहक मिल न सके | ||
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ऎ बंजारो हम लोग चले, हमको तो ख़सारा होता है | ऎ बंजारो हम लोग चले, हमको तो ख़सारा होता है | ||
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दफ़्तर से उठे कैफ़े में गए, कुछ शे'र कहे कुछ काफ़ी पी | दफ़्तर से उठे कैफ़े में गए, कुछ शे'र कहे कुछ काफ़ी पी | ||
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पूछो जो मआश का इंशा जी यूँ अपना गुज़ारा होता है | पूछो जो मआश का इंशा जी यूँ अपना गुज़ारा होता है | ||
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जसारत= दिलेरी; ख़सारा=नुक़सान; मआश=आजीविका | जसारत= दिलेरी; ख़सारा=नुक़सान; मआश=आजीविका | ||
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19:19, 9 नवम्बर 2009 का अवतरण
हम उनसे अगर मिल बैठते हैं क्या दोष हमारा होता है
कुछ अपनी जसारत होती है कुछ उनका इशारा होता है
कटने लगीं रातें आँखों में, देखा नहीं पलकों पर अक्सर
या शामे-ग़रीबाँ का जुगनू या सुबह का तारा होता है
हम दिल को लिए हर देस फिरे इस जिंस के गाहक मिल न सके
ऎ बंजारो हम लोग चले, हमको तो ख़सारा होता है
दफ़्तर से उठे कैफ़े में गए, कुछ शे'र कहे कुछ काफ़ी पी
पूछो जो मआश का इंशा जी यूँ अपना गुज़ारा होता है
जसारत= दिलेरी; ख़सारा=नुक़सान; मआश=आजीविका
(रचनाकाल : )