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"बिजली का खम्भा / इब्बार रब्बी" के अवतरणों में अंतर

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'''रचनाकाल : 1967  
 
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19:28, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

वह चलता गया
और अंधेरा पाकर
चूम लिया बिजली का खम्भा
काले लोहे का ठंडापन।

क्यों चूमा उसने
बिजली के अंधे कंधाबरदार को
ढोएगा जो
उलझे तारों की
सती
निगेटिव-पाजेटिव धाराएँ।

इस सवाल का जवाब
दर्शनशास्त्रियों,
बुद्धिजीवियों
या केन्द्रीय मंत्रिमंडल के
किसी भी मंत्री
के पास नहीं है।

32 खंभे हैं सड़क पर
इसे ही पसंद किया उसने
और्रों के पास नहीं फ़ालतू वक़्त
रोशन हैं सब
इसने तुड़वाया बल्ब
बच्चों की गुलेल से
ताकि वह रात में आए
और चूमकर चला जाए।

इसके बस का नहीं चलना
उसके बस का नहीं रुकना।

रचनाकाल : 1967