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"तुम्हें देख कर / आलोक श्रीवास्तव-२" के अवतरणों में अंतर
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लिखना नहीं चाहा था दुख की कविता | लिखना नहीं चाहा था दुख की कविता |
10:54, 10 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
लिखना नहीं चाहा था दुख की कविता
विछोह का दर्द
तुम्हें देख कर धान के खेत याद आते थे
दूर तक फैला खेतों पर नीला आसमान
दूरवासी परिंदों की ऊंची उड़ान
एक सजल गोधूली
तुम्हें देखकर
मिथक हो चुके कविता के बिंब याद आते थे
आज महीनों बाद
बस से तुम्हारी एक झलक भर दिखी,
ट्रैफिक के विशाल रेले के बीच
फिर निशान भी नहीं था तुम्हारे वहां होने का
फिर मैंने सिर्फ दुख लिखा
विछोह जिया
तुम्हें देख कर एक करुण शाम याद आयी
खग, मृग, मधुकर और शिलाओं से
प्रिया का पता पूछता
एक निर्वासित नायक याद आया ।