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{{KKRachna
|रचनाकार=उदय प्रकाश
|संग्रह= रात में हारमोनियम हारमोनिययम / उदय प्रकाश
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आत्मा इतनी थकान के बाद
 
एक कप चाय मांगती है
 
पुण्य मांगता है पसीना और आँसू पोंछने के लिए एक
 
तौलिया
 
कर्म मांगता है रोटी और कैसी भी सब्ज़ी
 
ईश्वर कहता है सिरदर्द की गोली ले आना
 
आधा गिलास पानी के साथ
 
और तो और फकीर और कोढ़ी तक बंद कर देते हैं
 
थक कर भीख मांगना
 
दुआ और मिन्नतों की जगह
 
उनके गले से निकलती है
 
उनके ग़रीब फेफड़ों की हवा
 
चलिए मैं भी पूछता हूँ
 
क्या मांगूँ इस ज़माने से मीर
 
जो देता है भरे पेट को खाना
 
दौलतमंद को सोना, हत्यारे को हथियार,
 
बीमार को बीमारी, कमज़ोर को निर्बलता
 
अन्यायी को सत्ता
 
और व्याभिचारी को बिस्तर
 
पैदा करो सहानुभूति
 
कि मैं अब भी हँसता हुआ दिखता हूँ
 
अब भी लिखता हूँ कविताएँ।
</poem>
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