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"परसत पद पावन / भजन" के अवतरणों में अंतर

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<poem>परसत पद पावन सोक नसावन प्रगट भई तपपुंज सही।  
 
<poem>परसत पद पावन सोक नसावन प्रगट भई तपपुंज सही।  

21:43, 12 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

परसत पद पावन सोक नसावन प्रगट भई तपपुंज सही।
देखत रघुनायक जन सुखदायक सनमुख होइ कर जोरि रही॥

अति प्रेम अधीरा पुलक सरीरा मुख नहिं आवइ बचन कही।
अतिसय बड़भागी चरनन्हि लागी जुगल नयन जलधार बही॥१॥

मुनि श्राप जो दीन्हा अति भल कीन्हा परम अनुग्रह मैं माना।
देखेउँ भरि लोचन हरि भवमोचन इहइ लाभ संकर जाना॥

बिनती प्रभु मोरी मैं मति भोरी नाथ न मागउँ बर आना।
पद कमल परागा रस अनुरागा मम मन मधुप करै पाना॥३॥