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"माचिस की बाबत / ज्ञानेन्द्रपति" के अवतरणों में अंतर
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जला डालीं बुझा डालीं | जला डालीं बुझा डालीं | ||
गुजरात में, पिछले दिनों | गुजरात में, पिछले दिनों | ||
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आदमीयत का मुर्दा जलाने में? | आदमीयत का मुर्दा जलाने में? | ||
जब माचिस मिलने भी लगेगी इफरात, जल्द ही | जब माचिस मिलने भी लगेगी इफरात, जल्द ही | ||
अगरबत्तियां जलाते | अगरबत्तियां जलाते | ||
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ताप से अधिक पश्चात्ताप से?! | ताप से अधिक पश्चात्ताप से?! | ||
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04:18, 17 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
बाज़ार से
माचिसें गायब हैं
दस दुकान ढूंढे नहीं मिल रही है एक माचिस
बड़ी आसानी से पायी जाती थी जो हर कहीं
परचून की पसरी दुकानों पर ही नहीं
पान के खड़े पगुराते खोखों पर भी
राह चलते
चाह बलते
मिल जाने वाली माचिस, मुस्तैद
एक मुँहलगी बीड़ी सुलगाने को
एहतियात से!
क्या हमने सारी माचिसें खपा डालीं
जला डालीं बुझा डालीं
गुजरात में, पिछले दिनों
आदमियों को ज़िन्दा जलाने में
आदमीयत का मुर्दा जलाने में?
जब माचिस मिलने भी लगेगी इफरात, जल्द ही
अगरबत्तियां जलाते
क्या हमारी तीलियों की लौ काँपेगी नहीं
ताप से अधिक पश्चात्ताप से?!