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शिशु और शैशव / रामधारी सिंह "दिनकर"
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09:35, 21 नवम्बर 2009
::(६)
बच्चों को नाहक संयम सिखलाते हो।
वे तो बनना वही चाहते हैं जो तुम हो।
तो फिर जिह्वा को देकर विश्राम जरा-सा
अपना ही दृष्टान्त न क्यों दिखलाते हो?
</poem>
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