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"निराशावादी / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर

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पर्वत पर, शायद, वृक्ष न कोई शेष बचा<br>
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क्या कहा कि मैं घनघोर निराशावादी हूँ?
धरती पर, शायद, शेष बची है नहीं घास<br><br>
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तब तुम्हीं टटोलो हृदय देश का, और कहो,
 
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लोगों के दिल में कहीं अश्रु क्या बाकी है?
उड़ गया भाप बनकर सरिताओं का पानी,<br>
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बाकी न सितारे बचे चाँद के आस-पास ।<br><br>
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बोलो, बोलो, विस्मय में यों मत मौन रहो ।<br><br>
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19:09, 21 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

पर्वत पर, शायद, वृक्ष न कोई शेष बचा,
धरती पर, शायद, शेष बची है नहीं घास;
उड़ गया भाप बनकर सरिताओं का पानी,
बाकी न सितारे बचे चाँद के आस-पास ।

क्या कहा कि मैं घनघोर निराशावादी हूँ?
तब तुम्हीं टटोलो हृदय देश का, और कहो,
लोगों के दिल में कहीं अश्रु क्या बाकी है?
बोलो, बोलो, विस्मय में यों मत मौन रहो ।