भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इज़्हार / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद फ़राज़ |संग्रह=दर्द आशोब / फ़राज़ }} {{KKCatNazm}} <poem> …)
 
छो
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
तो ये न समझ कि मेरी हस्ती<ref>अस्तित्व</ref>
 
तो ये न समझ कि मेरी हस्ती<ref>अस्तित्व</ref>
 
बेग़ान-ए-शोल-ए-वफ़ा<ref>प्रेम-प्रतिज्ञा से अनभिज्ञ</ref> है
 
बेग़ान-ए-शोल-ए-वफ़ा<ref>प्रेम-प्रतिज्ञा से अनभिज्ञ</ref> है
तहक़ीर<ref></ref> से यूँ न देख मुझको
+
तहक़ीर<ref>उपेक्षा</ref> से यूँ न देख मुझको
ऐ संगतराश<ref>मूर्तिकार</ref> तेरा तेशा<ref>छैनी</ref>
+
ऐ संगतराश<ref>मूर्तिकार</ref>!
 +
तेरा तेशा<ref>छैनी</ref>
 
मुम्किन<ref>संभव</ref> है कि ज़र्बे-अव्वली<ref>पहली चोट</ref> से
 
मुम्किन<ref>संभव</ref> है कि ज़र्बे-अव्वली<ref>पहली चोट</ref> से
 
पहचान सके कि मेरे दिल में
 
पहचान सके कि मेरे दिल में

11:49, 22 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

   इज़्हार<ref>अभिव्यक्ति</ref>

पत्थर की तरह अगर मैं चुप रहूँ
तो ये न समझ कि मेरी हस्ती<ref>अस्तित्व</ref>
बेग़ान-ए-शोल-ए-वफ़ा<ref>प्रेम-प्रतिज्ञा से अनभिज्ञ</ref> है
तहक़ीर<ref>उपेक्षा</ref> से यूँ न देख मुझको
ऐ संगतराश<ref>मूर्तिकार</ref>!
 तेरा तेशा<ref>छैनी</ref>
मुम्किन<ref>संभव</ref> है कि ज़र्बे-अव्वली<ref>पहली चोट</ref> से
पहचान सके कि मेरे दिल में
जो आग तेरे लिए दबी है
वो आग ही मेरी ज़िंदगी है

शब्दार्थ
<references/>