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पहचान सके कि मेरे दिल में | पहचान सके कि मेरे दिल में |
11:49, 22 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
इज़्हार<ref>अभिव्यक्ति</ref>
पत्थर की तरह अगर मैं चुप रहूँ
तो ये न समझ कि मेरी हस्ती<ref>अस्तित्व</ref>
बेग़ान-ए-शोल-ए-वफ़ा<ref>प्रेम-प्रतिज्ञा से अनभिज्ञ</ref> है
तहक़ीर<ref>उपेक्षा</ref> से यूँ न देख मुझको
ऐ संगतराश<ref>मूर्तिकार</ref>!
तेरा तेशा<ref>छैनी</ref>
मुम्किन<ref>संभव</ref> है कि ज़र्बे-अव्वली<ref>पहली चोट</ref> से
पहचान सके कि मेरे दिल में
जो आग तेरे लिए दबी है
वो आग ही मेरी ज़िंदगी है
शब्दार्थ
<references/>